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सुल्ताना रजिया का शासन।रजिया सुल्तान की हिस्ट्री। रजिया सुल्तान की मृत्यु। रजिया सुल्तान की जीवनी।रजिया सुल्तान की जीवनी | Razia Sultana Biography in hindi।

( 5 ) सुल्ताना रजिया ( 1236-1240 ई. )

      वह एक महान् शासक, बुद्धिमती, न्यायप्रिय, उदार, विद्वानों की आश्रयदात्री, प्रजा-शुभचिन्तक, सैनिक गुणों से परिपूर्ण थी जो एक शासक के लिए आवश्यक है ।



सुल्ताना रजिया का शासन।रजिया सुल्तान की हिस्ट्री। रजिया सुल्तान की मृत्यु। रजिया सुल्तान की जीवनी।रजिया सुल्तान की जीवनी | Razia Sultana Biography in hindi।



' ' भारत के मुस्लिम इतिहास की वह पहली स्त्री थी जो दिल्ली के सिंहासनु पर बैठी और जिसने संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न  राजतंत्र के सिद्धांत  को अपनाया । इस्तुतमिश ने प्रारम्भ से ही उसें
राजकुमार को भाँति शिक्षा दी थी । जब इल्लुतमिश ग्वालियर पर अभियान के लिए दिल्ली से चला तो शासन की देखभाल का कार्य वह रजिया को सौंप गया था, जिसे उसने कुशलता के साथ पूरा किया । बाद में सुल्तान ने उसे अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया और तुर्क सरदारों ने उस समय उसका समर्थन भी किया था । परन्तु बाद में तुर्क सरदारों के अहम् ने एक स्त्री के आगे शीश झुकाना स्वीकार नहीं किया और रूक्नुद्दीन को सुल्तान बना दिया । परन्तु रजिया ने सर्वसाधारण और युवा तुर्क अधिकारियों के सहयोग से सिंहासन प्राप्त कर लिया ।

अमीरों के विद्रोह का दमन-


यह बात अमीरों के लिए एक गम्भीर चुनौती भी थी क्योंकि नये सुल्तान का चयन करना वे अपना अधिकार समझते थे । चूँकि रजिया के चयन में उनकी सम्मति की उपेक्षा की गई थी, अत: वे रजिया को सुल्तान मानने के लिए तैयार नही थे और उन्होंने सेना सहित दिल्ली की तरफ कूच जारी रखा। इस प्रकार सुल्ताना बनते ही रजिया को अमीरों के विद्रोह का सामना -करना पड़ा।
बदायूँ मुल्तान, हांसी और लाहौर के सूबेदारों ने दिल्ली के समीप ही अपना शिविर लगा लिया । परन्तु रजिया भी साहसी युवती थी। अत: उसने राजधानी के बाहर निकल कर शत्रु से मुकाबला करने का निश्चय किया । प्रारम्भिक घावों से जब अपेक्षाकृत सफलता न मिली तो रजिया ने कूटनीति का सहारा लिया । उसे सूबेदारों को पारस्परिक फूट की जानकारी मिल चुकी थी । अत : उसने बदायूँ के सूबेदार मलिक इजाउद्दीन मुहम्मद सालारी और मुल्तान के सूबेदार इज्जनुद्दीन कबीर खाँ ऐयाज को अपनी तरफ मिला लिया और विद्रोही शिविर में यह प्रचार भी करवाया कि बहुत से शक्तिशाली अमीर रजिया के पक्ष में चले गये हैं । परिणामस्वरूप बहुत से विद्रोही सैनिक शिविर से भागने लगे । इसी समय रजिया ने विद्रोहियों पर जोरदार आक्रमण किया । भागते हुए सैनिकों का पीछा करके उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया । हांसी का सूबेदार मलिक सैफूद्दीन कूची बन्दी बना लिया गया और उसे मौत के घाट उतार दिया गया । लाहौर का सूबेदार मलिक अलाउद्दीन जानी भी मारा गया । वजीर जुनैदी सिरमूर की पहाडियों की तरफ भाग गया । इस प्रकार विद्रोह को कुचल दिया गया । अमीरों और ताज के मध्य लड़े गये इस संघर्ष में रजिया ने उनकी संगठित शक्ति को परास्त करके अपने चयन का औचित्य सिद्ध कर दिया । इससे उसकी सत्ता को धाक जम गई और सर्वसाधारण में उसकी लोकप्रियता बढ़ गई ।

रजिया के समय की मुख्य घटनाएँ


( 1 )करमत तथा मुजाहिदों का विद्रोह

        सुल्तान बनने के कुछ महीनों बाद ही रजिया को करमत तथा मुजाहिदों के विद्रोह का सामना करना पडा़ । नूरूद्दीन नामक एक तुर्की के उकसाने पर दिल्ली के पडोस और गगा-यमुना के दोआब में बसे इन सम्प्रदायो के अनुयायी दिल्ली के आसपास एकत्रित होने लगे । अपने नेता कि प्रेरणा से उनलोगों ने दिल्ली सिंहासन को इस्लाम के कट्टरपंथियों से छीनने का निश्चय किया । शुक्रवार मार्च 1237 ई. के दिन करमाती लोगों ने शस्त्रो से सज्जित होकर दो अलग दिशाओं से दिल्ली कि जमा मस्जिद मर आक्रमण कर दिया । उनका विश्वास था कि सुल्ताना रजिया भी वहाँ होगी । करमातियों ने मस्जिद मे उपस्थित मुसलमानों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया जिससे भारी कोलाहल मच गया । रजिया ने तत्काल सेना की सहायता से विद्रोह को कुचल दिया । सैकडों करमातियों को मौत के घाट उतार दिया गया और बाकी बचे करमातियों को सख्त सजा दी गई ।

( 2 ) रणथम्भौ का पतन-

                                  इस्तुतमिश की मृत्यु और रूक्नुद्दीन की अकर्मण्यता से उत्पन्न अव्यवस्था का लाभ उठाकर चौहान राजपूतों ने रणथम्भौर के दुर्ग को घेर लिया । तुर्क सेना दुर्ग में धिर गई । सुल्ताना ने रणथम्भौर में फँसी तुर्क सेना कि सहायता के लिए एक सैना भेज दी । परन्तु इस सेना को यह सुझाव भी दिया गया कि यदि स्थिति बिगड़ जाय तो दुर्ग को खाली कर दिया जाये और सैनिकों को सुरक्षित लौटा लिया जाये । तदनुसार तुर्को ने रणथम्भौर दुर्ग खाली कर दिया और चौहानों ने उस पर अपना अधिकार जमा लिया । रजिया की इस कार्यवाही से बहुत से तुर्क अमीर असन्तुष्ट हो गये ।

( 3 ) ग्वालियर के दुर्ग कि रक्षा कि समस्या-

             ग्वालियर का दुर्ग-रक्षक जियाउद्दीन अली सल्तनत  था । रजिया को जब यह जानकारी मिली कि वह अब भी उसके विरुद्ध जोड़-तोड़ करने में लगा हुआ है तो उसने बरन के सूबेदार को उसके विरुद्ध अभियान करने का आदेश दिया । बरन के सूबेदार ने उसको बन्दी बनाकर दिल्ली भिजवा दिया परन्तु दिल्ली पहुँचने के पूर्व ही वह लापता हो गया । रजिया के विरोधी अमीरों को यह विश्वास हो गया कि सुल्ताना के संकेत पर उसकी हत्या कर दी गई है और सुल्ताना अपने विरोधियों का सफाया करने वाली है । इसी समय नरवर के शासक यजवपाल ने ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया दुर्ग रक्षक तुर्क सेना अधिक दिनों तक आक्रमण का सामना न कर सकी । रजिया ने सहायता  के स्थान दुर्ग को खाली करवा दिया। इससे तुर्क अमीर और भी असन्तुष्ट हो गये और उम्हें ऐसा प्रतीत होने लगा कि सल्तनत छिन्न-भिन्न हो जायेगी ।

( 4 ) सीमान्त समस्या

      सल्तनत के पश्चिमी सीमा पर मंगोलों के निरन्तर आक्रमण शुरू हो गये थे । इस क्षेत्र पर अभी भी जलालुद्दीन मंगबरनी के प्रतिनिधि हसन करलुग का अधिकार था । मंगोलों के विरुद्ध उसने रजिया से सहायता की अपील की । इस्तुतमिश को नीति का पालन करते हुए रजिया ने सहायता देने से इन्कार कर दिया । परन्तु तुर्क अमीरों ने इसे सुल्ताना की सैनिक निर्बलता का प्रतीक माना ।

( 5 ) रजिया के मर्दाने रवैये से असन्तोष-
       रजिया का मर्दाना रवैया तुर्क अमीरों को पसन्द नहीं आया । रजिया ने परम्परागत पर्दा त्याग दिया और मर्दाना लिबास में दरबार लगाना आरम्भ कर दिया । वह खुले दरबार में लोगों की फरियाद सुनने लगी और अधिकारियों से राजकार्य की रिपोर्ट लेने लगी । औरत होते हुए भी वह मर्दो कि तरह शिकार और घुड़सचारी करने लगी । उसने सैन्य सचालन का काम सम्भाल लिया और स्वयं युद्धों मे भाग लेने लगी । इससे रूढिवादी मुसलमान और तुर्क अधिकारी नाराज हो गये।


( 6 ) याकूत के प्रति अनुराग

       जमालुद्दीन याकूत नामक एक अबीसीनियाई हब्सी के प्रति सुल्ताना ने अपार स्नेह प्रदर्शित करके बहुत बडी भूल की । सुल्ताना बनते ही रजिया ने उसे अमीर- ए- आखूर  पद पर नियुक्त कर दिया था । उसे किसी भी समय सुल्ताना के सम्मुख उपस्थित होने की विशेष सुविधा प्रदान कि गई और घुड़सवारी के समय वह प्राय: याकूत को अपने साथ ले जाती थी । इससे वंशानुगत कुलीन तुर्क सरदार सुल्ताना से अप्रसन्न हो गये।

( 7 ) अमीरों का विद्रोह और रजिया का पत्तन-

               सुल्ताना बनने के तीन वर्ष बाद ही उसे अपने अमीरों के विद्रोह का सामना करना पड़ा । रजिया कि नीतियों से यह स्पष्ट होने लगा था कि वह शासन सत्ता अपने हाथ में कन्द्रित रखने के लिए प्रयत्नशील है और प्रशासन के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर गैर-तुर्क सरदारों को नियुक्त करके तुर्कों के विरुद्ध एक नया दल तैयार कर रही थी । अत: तुर्क सरदारों ने अपने स्वार्थी को रक्षा के लिए रजिया को पदच्युत करने के लिए ठोस षड्यन्त्र रचा । सर्वप्रथम, लाहौर के सूबेदार कबीर खाँ ऐयाज ने विद्रोह किया परन्तु रजिया ने उसके विद्रोह को कुचल दिया । उसने सुल्ताना से क्षमा माँग ली । रजिया ने उसको क्षमा तो कर दिया परन्तु लाहौर का सुबा उससे छीन लिया गया और केवल मुल्तान का सूबा उसके यास रहने दिया । इस घटना के थोड़े दिन बाद सैफुद्दीन ने मुल्तान पर आक्रमण करके ऐयाज को खदेड दिया । रजिया ने ऐयाज की सहायता नहीं की ।
नई योजना के प्रमुख सदस्य थे- भटिण्डा का सूबेदार इख्तियाल्दीन अल्तूनिया लाहौर का सूबेदार मलिक इज्ज्युद्दीन कबीर खाँ ऐयाज और अमीर-ए-हाजिब ऐतिगीन । योजना के अनुसार रजिया को दिल्ली से बाहर ले जाकर समाप्त करना था क्योंकि षड्यन्त्रकारियों का विश्वास था कि दिल्ली की जनता सुल्ताना की समर्थक है और सुल्ताना भी काफी सतर्क है । अत: अल्तुनिया को विद्रोह करने क्रै लिए कहा गया । योजनानुसार अल्तूनिया ने विद्रोह कर दिया । रजिया विद्रोह का दमन करने के लिए दिल्ली से चल पडी । मार्ग में षड्यन्त्रकारियों ने उसके कृपापात्र याकूत कि हत्या कर दी और भटिण्डा के निकट स्वय रजिया को भी बन्दी बना लिया और उसे अल्तुनिया कि देखरेख मे भटिण्डा दुर्ग मे रखा गया । इसके तुरन्त बाद विद्रोही अमीरों ने इल्लुतमिश के तीसरे लडके 'बहरामशाह को सुल्तान बना दिय। बहरामशाह सुल्तान तो बन गया परन्तु शासन--सत्ता पर विद्रोहियो के नेता एेतिगीत ने कब्जा करे लिया । उसने सुल्तान की बहिन के साथ विवाह कर लिया। उसकी निरंकुशता से तंग आकर आरामशाह ने उसकी हत्या करवा दि । ऐतिगीन की मुत्यु से उसका साथी अल्तुनिया निराश हो गया क्योंकि अब उसे किसी महत्वपूर्ण पद के मिलने की आशा नहीं रही । अत: उसने रजिया को रिहा करके उसके साथ विवाह कर लिया । दोनों ने सैना सहित दिल्ली की तरफ कूच करे दिया।
सुल्तान बहरामशाह की सैना ने बढकर रजिया पर आक्रमण किया । युद्ध में रजिया और अल्तुनिया की हार हुई और वे दोनों भाग निकले । परन्तु कैथल के निकट कुछ हिन्दु लुटेरों ने उनको हत्या कप दि इस प्रकार सुल्ताना रजिया का दुखमय अन्त हुआ ।


रजिया के पतन के कारण

  (1) अमीरों के स्वार्थ

      अमीरों को अपने स्वार्थों की चिन्ता थी । वे तो एक नाममात्र का शासक चाहते थे ताकि उन्हें मनमाने तरीके से काम करने का अवसर मिलता रहे । रजिया एक योग्य सुल्ताना थी और सत्ता पर अपना नियन्त्रण रख कर अमीरों को ताज के कठोर नियन्त्रण में रखना चाहती थी ।

( 2 ) रजिया का स्त्री होना-

     कुछ विद्वानों के अनुसार रजिया का स्त्री होना ही उसके पतन का मुख्य कारण था । रजिया में शासकीय गुणों की कमी नहीं थी । उस युग में तुर्क अमीर एक स्त्री के नेतृत्व को स्वीकार करना अपनी हेठी समझते थे । उस युग की राजनीति में एक स्त्र के लिए चाहे वह कितनी ही योग्य क्यों न रही हो, कोई स्थान न था ।

( 3 ) रजिया का मर्दाना रवैया-

            रजिया ने परम्परागत पर्दे की प्रथा को त्याग कर और ' मर्दाना लिबास पहन कर दरबार लगाना शुरू कर दिया था । मुसलमानों की निगाह में यह सामाजिक मर्यादा का अतिक्रमण था । इतना ही नहीं, वह पुरुषों की भाँति शिकार खेलने जाने लगी, अपनी सेना का स्वयं संचालन करने लगी और युद्धों में भाग लेने लगी । उसकी हरकतों ने धर्मनिष्ठ कट्टर मुसलमानों और अमीरों को उसका जबरदस्त विरोधी बना दिया ।

( 4 ) याकूत के साथ सम्बन्ध

 
तुर्क सरदारों के आक्रोश का मुख्य कारण यही था कि याकूत एक हब्शी था । यदि यही कृपा किसी तुर्क सरदार पर की गई होती तो उसका आचरण कभी निन्दनीय नहीं माना जाता ।

( 5 ) राजनीतिक घटनाएँ-

     सुल्ताना बनने के बाद रजिया ने कुछ राजनीतिक घटनाओँ के प्रति जिस प्रकार की नीति अपनाई वह भी उसके पतन का एक कारण बन गई । रणथम्भौर और ग्वालियर के दुर्ग को खाली कराना उसकी सैनिक कमजोरी मानी गई । कबीर खाँ ऐयाज से लाहौर का सूबा छिन लेना और भूतपूर्व वजीर जुनैदी के रिश्तेदार ग्वालियर के दुर्गरक्षक का अचानक लापता हो जाना। ये सब घटनाएँ ऐसी थीं जिससे तुर्क सरदार यह सोचने लगे कि रजिया उन सभी को एक-एक करके समाप्त करने पर तुली है । अत:उन्होंने संगठित होकर रजिया को हटाने का फैसला किया ताकि उनके स्वार्थों की रक्षा की जा सके । उसके पतन का वास्तविक कारण यही था कि तुर्क अमीर शासन सत्ता अपने हाथ मे लेना चाहते थे जबकि रजिया इसके लिए तैयार न थी ।
                     

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                            Thank-You

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपने रजिया सुल्तान पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। मै आपके प्रयासों की सराहना करता हू। और आपसे विनती करता हू की आप इसी तरह से पोस्ट लिखते रहिये। धन्यवाद
    भारत मे यूरोपिय शक्तियों का आगमन

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