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रूक्नुद्दीन फीरोजशाह का शासन

( 4 ) रूक्नुद्दीन फीरोजशाह ( 1236 ईं. )

रूक्नुद्दीन फीरोजशाह का शासन

इस्तुतमिश को इस बात की चिन्ता हो गई थी कि उसकी मृत्यु के बाद दिल्ली सल्लनत का अस्तित्व खतरे में न पड़ जाय, क्योंकि उसका योग्य एवं प्रतिभावान पुत्र नासिरूद्दीन उसके जीवन काल मे ही मर गया था । उससे छोटा रूक्नुद्दीन अत्यधिक आलसी तथा विलासी था और अन्य पुत्र अवयस्क थे । अत:उसने अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निश्चय किया । रजिया की योग्यता को वह परख चुका था और उसकी अनुपस्थिति में रजिया ने भी सुचारु रूप से शासन चला कर अपनी योग्यता बता चुकि थी । इस्तुतमिश ने अपने सामन्तो से रजिया के उत्तराधिकार पर सहमति भी प्राप्त कर ली थी ।

इस्तुतमिश के सामने तो तुर्क सरदारों ने रजिया को सुल्तान बनाना स्वीकार कर लिया था परन्तु उसकी मृत्यु के चाद एक स्त्री को अपनी सुल्ताना बनाना उन्हें पसन्द नहीं आया और उन्होंने इस्तुतमिश के जीवित बड़े पुत्र रूक्नुद्दीन फीरोजशाह को सिंहासन पर बैठा दिया । वह भोगबिलास में डूब गया और अनुचित स्थानों पर राज्य के धन को नष्ट करने लगा । ' ' परिणामस्वरूप शासन व्यवस्था लड़खड़ाने लग गई और शासन की बागडोर उसे कि माँ शाह तुर्कान के हाथ में चली गई। शाह तुर्कान पहले एक दासी थी ।
इल्तुतमिश की बेगम बनने के बाद वह अत्यधिक महत्वाकांक्षिणी और क्रूर बनती गई और अब  शासन सत्ता के हाथ में आते ही उसने उन सभी अमीरों से प्रतिशोध लेना शुरू कर दिया।शाह तुर्कान ने इल्तुतमिश की अन्य बेगमों भी प्रतिशोध लिया । कई अमीरों का वध करवा दिया और इल्तुतमिश के युवा पुत्र कुतुबुद्दीन को अन्धा करवा कर मार डाला । उसके अत्याचारों के परिणामस्वरूप समूचे रज्यों में असन्तोष और विद्रोह फैल गया । मुल्तान, हांसी, बदायूँ लाहौर आदि के सूबेदारों ने संगठित होकर विद्रोह कर दिया । रुक्नुद्दीन विद्रोहियों का दमन करने के लिए दिल्ली से चला। परन्दु मार्ग में ही उसका वजीर जुनैदी उसका साथ छोडकर विद्रोहियों से जा मिला । रूक्नुद्दीन घबरा गया और उसने वापस दिल्ली की तरफ कूच कर दिया । परन्तु उसकी अनुपस्थित में दिल्ली कि स्थिति भी बदल चुकी थी । शुक्रवार की नमाज़ के समय रजिया जनता के सामने जा खडी हुई और उसे स्वर्गीय सुल्तान की अन्तिम इच्छा और शाह तुर्कान के अत्याचारों की याद दिलाते हुए सहयोग की अपील को । इसका परिणाम प्रभावशाली निकला । न केवल जनता ने अपितु बहुत से युवा तुर्क अधिकारियों ने रजिया का साथ दिया । शाह तुर्कान को बन्दी बना कर कारागार में डाल दिया गया और दिल्ली पहुँचते ही रूक्नुद्दीन फीरोजशाह को भी बन्दी बना लिया गया और

रजिया को दिल्ली सिंहासन पर बैठा दिया गया । कुछ दिनों बाद शाह तुर्कान और रुक्नुदीन को मौत के घाट उतार दिया गया ।
   
संबंधित वीडियो: https://youtu.be/3SRSr9z9tfk

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