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कुतुबुद्दीन ऐबक



                         (1).कुतुबुद्दीन ऐबक 


महमूद गोरी की मृत्यु 1206 ई. मे हुई थी। ऐबक उस समय दिल्ली में ही था और दिल्ली के मुस्लिम सामन्तो और लाहौर के सामन्तो ने भी उसका नेतृत्व स्वीकार कर लिया थाा। परंतु उसने सुल्तान पद की उपाधि धारण नहीं की उसने केवल मालिक और सिपहसालार की उपाधि धारण की।

कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा कठिनाइयों पर विजय

1.कुतुबुद्दीन को सबसे ज्यादा खतरा गजनी के सूबेदार यल्दौज से था। महमूद गोरी की मौत के बाद उसने कुबाचा पर आक्रमण करके उसे जीतने का प्रयाश किया।कुबाचा कुतुबुद्दीन ऐबक का नेतृत्व स्वीकार कर चुका था इसलिए ऐबक ने यल्दौज पर आक्रमण कर दिया और उसे वहां से परास्त करके खदेड़ दिया।उसने आगे बढ़कर गजनी को भी जीत लिया परंतु कुछ समय बाद यल्दौज ने पुन गजनी को प्राप्त करे लिया।

2.1206 ई.मे अलीमर्दान ने बंगाल तथा बिहार कि सत्ता हथिया ली लेकिन उसके विरोधी खिलजी सरदारों ने उसे बंदी बना लिया और मुहम्मद शेरा को सिहांसन पर बैठा दिया।अलीमर्दान वहां से भागे निकला तथा कुतुबुद्दीन ऐबक के पास चला गया तथा उस से सहायता की याचिका की और उसने कुतुबुद्दीन ऐबक की अधिनता मानने का वचन दिया इस प्रकार अलीमर्दान ने फिर से सत्ता हासिल कर ली।


 लगभग 4 वर्ष शासन करने के बाद नवंबर,1210 मे लाहौर में चौगान(पोलों के समान एक खेल) खेलते समय वह अपने घोड़े से गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।

कुतुबुद्दीन ऐबक का मूल्यांकन

इसे भारत में तुर्क सल्तनत कि स्थापना करने वाला माना जाता है।

उसने दिल्ली मे कुवातुक इस्लाम मस्जिद का निर्माण करवाया और ख्वाजा कुतुबुद्दीन यादगार में कुतुबमीनार का निर्माण कार्य शुरु करवाया अजमेर में उसने हिंदू मंदिर की निर्माण सामग्री से एक मस्जिद बनवाई जो ढाई दिन का इोपड़ा के नाम से प्रसिद्ध है।




कुतुबुद्दीन ऐबक से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रशन

1. कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली के निकट इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाई थी।

2.1194 मे महमूद गौरी तथा कुतुबुद्दीन ऐबक ने मिलकर कन्नौज के जयचन्द्र को पराजित किया था।इसे युद्घ को चन्दावर का युद्घ भी कहते है।



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